सभापति जी, जैसा कि मैंने कहा, अंग्रेज़ों ने इस देश में अंग्रेजी को प्रतिष्ठित किया और यहाँ के लोगों को मजबूर होकर सरकारी नौकरियों को प्राप्त करने के लिए, अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए, पैसा कमाने के लिए, अंग्रेजी पढ़नी पड़ी और धीरे-धीरे हिन्दुस्तानी अंग्रेजी भाषा पढ़ने को मजबूर होने लगे। मैं अपनी सरकार को बतलाना चाहता हूँ कि दरअसल दक्षिण के लोग हिंदी विरोधी नहीं है।
सभापति जी, जैसा कि मैंने कहा, अंग्रेज़ों ने इस देश में अंग्रेजी को प्रतिष्ठित किया और यहाँ के लोगों को मजबूर होकर सरकारी नौकरियों को प्राप्त करने के लिए, अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए, पैसा कमाने के लिए, अंग्रेजी पढ़नी पड़ी और धीरे-धीरे हिन्दुस्तानी अंग्रेजी भाषा पढ़ने को मजबूर होने लगे। मैं अपनी सरकार को बतलाना चाहता हूँ कि दरअसल दक्षिण के लोग हिंदी विरोधी नहीं है। अगर आप कह दें कि कोई दक्षिण का भाई हो हिंदी पढ़े उसे और लोगों की अपेक्षा 50 रूपये ज्यादा वेतन दिया जाएगा तो सब हिंदी पढ़ने लगेंगे। कुछ मुट्ठी भर ऊंची नौकरशाही के लोग हिंदी लाए जाने के विरोधी हैं, क्योंकि ऐसा होने से नौकरियों पर से उनका एकाधिकार खत्म होता है और उस स्वार्थ के मद्देनज़र वह हिंदी का कोई न कोई बहाना कर विरोध करते रहते हैं और उसके आने में तरह-तरह की बाधाएं डालने का प्रयास भी करते हैं। उनके इसी कुचक्र का फल है कि हिंदी को आज तक उसका उपयुक्त स्थान नहीं मिला।
गाँधी जी सन् 1917 में मेरे जिले में गये थे। गाँधी जी ने गुजराती में अपना भाषण नहीं किया बल्कि गाँधी जी ने हिंदुस्तानी में भाषण किया। गाँधी जी ने कहा कि अगले साल मैं चम्पारन के लोगों को भोजपुरी में भाषण करते देख लूंगा। जैसा मैंने कहा हमारी सरकार हमारे मंत्रियों की वजह से नहीं चलती है बल्कि हमारी सरकार दफ्तर के लोगों से चलती है। यह तो दफ्तरों में जो नौकरशाह लोग बैठे हुए हैं, उनसे हमारी सरकार चलती है। आज हकीकत यह है कि थोड़े से ऊपरी सर्विस वाले और थोड़े से हिंदुस्तान के लोग चाहते हैं कि हिंदुस्तान का राज अंग्रेज़ी भाषा के द्वारा चलायें। सब जानते हैं कि चीन में सारे काम-काज चीनी भाषा में चलता है।
श्रीमन्, सभी भारतीय भाषाओं को एक-दूसरे के निकट लाने के लिए देवनागरी लिपि को अगर सामान्य माध्यम बना लिया जाए तो अत्यन्त उपयुक्त होगा। इसके साथ ही साथ अभी कुछ दिन पूर्व, जब राष्ट्रीय एकता सम्मेलन हुआ था तो उसमें भी जब यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि उत्तर भारत के व्यक्तियों को दक्षिण भारत की एक या दो भाषाएं अवश्य सीखनी चाहिए तो सौभाग्य से मैं वहां उपस्थित था और उस समय भी मैंने इस प्रश्न को उठाया था कि क्या यह आवश्यक नहीं होगा कि जब किसी दूसरी भाषा को सीखा जाए तो लिपि की दीवार बीच में कायम रखी जाए। अगर यह लिपि की दीवार बीच में न रहे तो कम से कम यह लिपि की तो कठिनाई हट जाए और दूसरी भाषाओं के वास्ते भी देवनागरी लिपि हो जाए। उस समय जो अन्य भाषा-भाषी थे , उन्होंने इस सुझाव को बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर लिया और मुझे इस बात को कहते हुए प्रसन्नता है कि इस विधेयक में भी इस बात को सम्मान दिया गया है। लेकिन जो एक भय इसके साथ मुझे प्रतीत हो रहा है वह यह है कि इसमें अंकों के संबंध में किसी विशेष प्रकार का कोई संकेत नहीं दिया गया है। इस भय शब्द का प्रयोग जान-बूझकर मैंने यहाँ किया। क्योंकि अभी कुछ दिन पूर्व समाचार पत्रों की नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से एक हिंदी कोष प्रकाशित हुआ है। इस कोष की सहायता के लिए भी भारत के शिक्षा मंत्रालय से कुछ अनुदान दिया जाना था। अब नागरी प्रचारिणी सभा की अब तक ऐसी परम्परा रही है, उस आधार पर इस कोष में जो अंक थे वह भारतीय अंक थे लेकिन उन्होंने कहा कि भविष्य में सभी प्रकार की पुस्तकों में अंतर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग होना चाहिए।
जहाँ तक पहले प्रश्न का संबंध है, जो व्यवस्था दूषित थी , अब सरकार के हाथों में आने से उस व्यवस्था में कुछ संशोधन होगा। इसमें भी कुछ अधिक संदेह तो प्रतीत नहीं होता लेकिन फिर भी इतना अवश्य है कि सरकारी मशीनरी को बिल्कुल दूध का धुला हुआ नहीं माना जा सकता है। जो व्यवस्था दूसरे हाथों में थी, सरकार के हाथों में आने से वह सर्वथा समाप्त हो जाएगी। ऐसी बात तो नहीं है परन्तु फिर भी मेरा अपना विश्वास इस प्रकार का है कि सरकार इस संस्था को उसी पवित्र उद्देश्य से चलाने के लिए प्रयत्नशील होगी जिन उद्देश्यों को लेकर इस संस्था की नींव डाली गयी थी। जहाँ तक हिंदी की प्रगति का संबंध है, उसके संबंध में तो मैं केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि सरकार की नीति के लिए इससे बड़ा प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है कि पिछले 12 वर्षों के समय में यह सरकार जिस मंथर गति से चल रही है, मेरा अपना अनुमान है कि हिंदी साहित्य सम्मेलन को अपने हाथ में लेने के पश्चात् यह सरकार कहीं उसी प्रकार की दुर्बलता और प्रमादी नीति का हिंदी साहित् सम्मेलन के जीवन में भी प्रवेश न करा दे। मेरा यह विश्वास है कि इस विधेयक की जिस धारा में यह कहा गया है कि अन्य भाषाओं का साहित्य भी देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया जाएगा वह बहुत हितकर होगा।
हमारे देश का यह एक बहुत बड़ा अभाव था जिसको कि हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा इस प्रकार पूरा किए जाने का प्रयास किया जाएगा। कुछ दिन पूर्व मैंने इस प्रकार का एक प्रस्ताव भी इस सदन में दिया था। मुझे इस बात को कहते हुए प्रसन्नता है कि मुख्य मंत्रियों का सम्मेलन जो इसी भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ था, उसमें इस बात को स्वीकार किया गया । इसका सुपरिणाम यह हुआ कि जब देश स्वतंत्र हुआ और जब स्वतंत्र होने के पश्चात् देश की राजभाषा बनाने का निर्णय होने लगा तो उसी पृष्ठभूमि में हम ने यह निश्चय किया कि स्वाधीन भारत में 15 वर्ष के पश्चात् हिंदी राजभाषा घोषित की जाएगी। हिंदी साहित्य सम्मेलन को राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित करते समय मुझे लगता है कि सरकार के सामने दो दृष्टि बिंदु थे। एक तो इसलिए उन्होंने यह मार्ग चुनना स्वीकार किया कि हिंदी साहित्य सम्मेलन की प्रबंध समिति में इतनी अव्यवस्था फैल गई थी कि हिंदी साहित्य सम्मेलन अपने मार्ग से और अपने उद्देश्य से भटक गया था।
कठिन शब्द
- प्रतिष्ठित
- सरकारी नौकरियों
- रोजी-रोटी
- दक्षिण
- मद्देनज़र
- नौकरशाही
- एकाधिकार
- कुचक्र
- सर्विस
- दक्षिण भारत
- उत्तर भारत
- देवनागरी
- अंतर्राष्ट्रीय
- दूषित
- सरकारी मशीनरी
- दुर्बलता
- प्रमादी
- पृष्ठभूमि
वाक्यांश
- जैसा कि मैंने कहा
- प्राप्त करने के लिए
- कमाने के लिए
- बतलाना चाहता हूँ
- दिया जाएगा
- विरोध करते रहते हैं
- लाने के लिए
- साथ ही साथ
- कम से कम
- बड़ी प्रसन्नता के साथ
- स्वीकार कर लिया
- राष्ट्रीय एकता सम्मेलन
- हिंदी साहित्य सम्मेलन