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उपसभापति महोदय, आज जो बात मैं आपको बतलाने जा रहा हूँ वह आप भी जानते हैं कि लोकतंत्र में जनता द्वारा सरकार चुनी जाती है। सरकार बनने के बाद वह जन-भावना को प्रतिबिम्बित करने वाली होनी चाहिए। यथा संभव 40 जन अपेक्षाओं को पूरी करने वाली होनी चाहिए। विश्व के सभी लोकतांत्रिक देशों में संसदीय प्रणाली का स्वरूप अपनी-अपनी 60 भावना और अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुरूप निर्धारित किया जाता रहा है। किंतु कहा जाता है कि कार्यपालिका का विधायिका 80 के प्रति और विधायिका का जनता के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व ही इस व्यवस्था का मौलिक सिद्धान्त है।

जहाँ एक 100 तरफ प्रजातांत्रिक प्रणाली के साथ-साथ संसद एवं विधान मंडलों का कार्यभार बढ़ने लगा और दूसरी तरफ कई कारणों से 120 इस बढ़ते हुए कार्यभार को सदन द्वारा निपटाना असंभव लगने लगा है। इसलिए यह विचार किया गया कि 140 क्यों न सदन अपने सदस्यों में से कुछ को प्रतिनिधि चुनकर ऐसी समिति का गठन करे जो किसी भी विषय 160 पर विस्तृत विचार कर उसके निष्कर्षो से सदन को अवगत कराती रहे। इसी विचार के परिणाम स्वरूप समिति प्रणाली का 180 सूत्रपात हुआ।

वर्तमान में जिसका अधिकाधिक उपयोग विश्व के अंदर अधिकांश विधायिकाओं में किया जा रहा है। 200 सदन की बैठक गंभीर चर्चा के लिए नहीं होती है, बल्कि वह समितियों के निर्णय को शीघ्रतिशीघ्र 220 स्वीकृत करने के लिए होती है। मैं यहाँ एक बात साफ कर देना चाहता हूँ कि सदन अपने समिति कक्षों में 240 बहुमत के आधार पर कानून नहीं बनाता, बल्कि कार्य विशेष के लिए चुने गये कुछ लोगों के माध्यम से बनाता 260 है ।

इसलिए यह कहना असत्य नहीं होगा कि सत्र के दौरान कांग्रेस या सत्तारूढ़ दल बैठक करता हुआ दिखाई देता है, 280 किंतु वास्तव में यह कार्य उसको अपने समिति कक्षों में ही किया जाना चाहिए। भारतीय जीवन शैली में बौद्धिक संस्कारों 300 का बहुत योगदान रहा है। सभा समिति की परंपरा भी हमारे यहाँ उसी काल से चली आ रही है। 320 यह बात अवश्य है कि इसके स्वरूप एवं अधिकार क्षेत्र में समय और शासन व्यवस्था के अनुसार बदलाव आता रहा है। 340

आधुनिक शासन व्यवस्था के अनुरूप समिति प्रणाली कब, कैसे शुरू हुईं। इसका श्रेय यकीनन अँग्रेजों को जाता है। वे हमारे यहाँ स्वतंत्रता 360 के पूर्व से ही संसदीय पद्धति की नींव डालने लगे थे। सन् 1881 और 1909 में ब्रिटिश 380 संसद ने भारत के बारे में जो कानून बनाये उनमें से उसी नींव के लक्षण आज भी हमारे देश में विद्यमान हैं।

सन् 1919 के सुधारों 400 द्वारा जो परिवर्तन हुए थे उसमें विधान-मंडलों के गठन के लिए कुछ सैद्धांतिक आधार तैयार किये गये थे। 420 वित्तीय समितियों को गठित करने का सुझाव इन्हीं सुधारों का एक अंग था। उस समय पाँच संसदीय 440 समितियों का गठन किया गया था। लोक लेखा समिति इनमें से एक है। उसके पश्चात् समिति प्रणाली में क्रमिक रूप से 460 सुधार होते रहे और इनका महत्व भी बढ़ता चला गया।


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