SSC Steno Grade C Special 100 WPM Hindi Shorthand Dictation
अध्यक्ष महोदय, यद्यपि स्वतंत्रता के बाद हमारा देश एक घंटे तो क्या एक मिनट भी प्रधानमंत्री से वंचित नहीं रहा, लेकिन ऐसे मौके कई बार आये हैं जब कि प्रधानमंत्री की तलाश न सिर्फ जनता को रही है बल्कि राजनेता और राजनीतिक दलों को भी रही है.
अध्यक्ष महोदय, यद्यपि स्वतंत्रता के बाद हमारा देश एक घंटे तो क्या एक मिनट भी प्रधानमंत्री से वंचित नहीं रहा, लेकिन ऐसे मौके कई बार आये हैं जब कि प्रधानमंत्री की तलाश न सिर्फ जनता को रही है बल्कि राजनेता और राजनीतिक दलों को भी रही है। आज ऐसा ही एक मौका फिर आ पड़ा है, जब कि एक प्रधानमंत्री को अपदस्थ करने की और दूसरे प्रधानमंत्री की तलाश करने की कोशिश करीब-करीब एक साथ की जा रही है। विरोधी दलों का कहना है कि दूसरे या वैकल्पिक प्रधानमंत्री की तलाश इतनी आवश्यक नहीं है जितना कि वर्तमान प्रधानमंत्री को अपदस्थ करना। मीडिया के इन प्रश्नों के उत्तर में हर विरोधी राजनेता ने अपने जवाब में यही कहा है कि वैकल्पिक सरकार या प्रधानमंत्री की तलाश की कोशिश उनकी प्राथमिकता नहीं है बल्कि प्राथमिकता यह है कि वर्तमान प्रधानमंत्री या सरकार को कैसे गिराया जाए।
वर्तमान प्रधानमंत्री और भावी प्रधानमंत्री को लेकर संविधान विशेषज्ञों के बीच भी बहस छिड़ गई है या फिर छेड़ दी गई है। जैसे कि अन्य विशेषज्ञों में मदभेद होते हैं, वैसे ही संविधान विशेषज्ञों के मतभेद भी जनता के समक्ष प्रस्तुत किये गये। ऐसा अन्य देशों में भी होता है या नहीं, यह तो वरिष्ठ पत्रकार अरुण शौरी या फिर राजनेता ही जाने, लेकिन हमारे देश में यह सब पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिल रहा है। इसका मतलब यह नहीं कि यहाँ संविधान विशेषज्ञ इससे पहले हमारे देश में उपस्थित ही नहीं थे लेकिन इन विशेषज्ञों के विशेष ज्ञान की आवश्यकता हाल ही में कुछ वर्षों से आ पड़ी है।
जब कभी कोई सरकार गिरती है या गिरायी जाती है या फिर लोकसभा में संख्या की गिनती का अभ्यास किया जाता है तो इन संविधान विशेषज्ञों के ज्ञान की गहराई की तह में जाने की एक परम्परा बन गई है। केन्द्रीय राजनीति की वर्तमान परिस्थिति में ऐसे कोई चार-पाँच संविधान विशेषज्ञों की राय ली गई। संविधान विशेषज्ञ का कहना था कि जब संसद का सत्र चल ही रहा है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को सरकार को बहुमत साबित करने का सुझाव या आदेश नहीं देना चाहिए। दूसरी और अन्य विशेषज्ञ का कहना था कि यदि प्रधानमंत्री को वास्तव में बहुमत प्राप्त है तो फिर उसे साबित करने में नुकसान भी क्या है? इससे जनता का विश्वास सरकार में और ज्यादा बढ़ेगा।
महोदय, सर्वोच्च न्यायालय के संविधान विशेषज्ञ वकीलों की भी इस प्रश्न पर एक राय नहीं थी। पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा की राय थी कि यदि बहुमत हासिल है तो संसद में साबित करने में देश का कोई नुकसान नहीं होगा। उधर दूसरे पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण का कहना था कि यदि वर्तमान सरकार के बहुमत पर कोई शंका है तो विरोधी दलों को अविश्वास प्रस्ताव लाकर यह शंका दूर करनी चाहिए। इसके लिए राष्ट्रपति द्वारा सरकार या प्रधानमंत्री को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना आवश्यक नहीं है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान राष्ट्रपति ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद की शपथ तभी दिलायी थी जब कि उन्होंने सुश्री जयललिता से श्री वायपेयी को समर्थन दिये जाने संबंधी चिट्ठी प्राप्त कर ली थी और अब चूंकि वह चिट्ठी वापस ले ली गई है या फिर उसे रद्द किये जाने के आशय से एक चिट्ठी और दे दी गई तो क्या संविधान यह कहता है कि समर्थन की चिट्ठी प्रधानमंत्री बनाये जाने के लिए मान्य है लेकिन समर्थन वापसी की चिट्ठी प्रधानमंत्री के बहुमत के बारे में कोई शंका पैदा नहीं करती, इसलिए प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को जारी रखा जाए। अतः यदि बहुमत का परीक्षण करना है तो अविश्वास प्रस्ताव विरोधी दलों को ही लाना होगा, भले ही समस्त समर्थक दल अपना समर्थन वापस लेने की सूचना राष्ट्रपति को भेज दें।
पहली दृष्टि में आम जनता को यह विश्वास नहीं हो सकता कि यदि सभी सहयोगी या समर्थक दल सरकार से समर्थन वापस लेते हैं, फिर भी सरकार बहुमत में बनी रहेगी। लेकिन संविधान विशेषज्ञ यदि यह मानते हैं कि सरकार को बहुमत हासिल है या नहीं, इस बात का सरोकार राष्ट्रपति का नहीं बल्कि विरोधी दलों का है तो फिर इसे देश के विशेषज्ञ वर्ग और सामान्य वर्ग की सोच का फर्क ही माना जा सकता है। लेकिन आम जनता इन विशेषज्ञों से यह प्रश्न तो कर ही सकती है कि सरकार को बहुमत हासिल है या नहीं, यह सरोकार विरोधी दलों का ही है तो फिर राष्ट्रपति का क्या सरोकार बचा रहा है? क्या राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाकर उसका बहुमत सिद्ध करने की जिम्मेदारी विरोधी दलों पर छोड़ सकते हैं? संविधान विशेषज्ञों की इस प्रश्न पर बहस अपने स्तर की हो सकती है।
कठिन शब्द
- वंचित
- अपदस्थ
- मीडिया
- वैकल्पिक
- संविधान विशेषज्ञ
- मतभेद
- सर्वोच्च न्यायालय
- अविश्वास प्रस्ताव
वाक्यांश
- पाई जाती हैं
- की जा रही है
- यही कहा है कि
- वैकल्पिक सरकार
- प्राथमिकता नहीं है
- प्राथमिकता यह है कि
- हो सकती है।